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21 Feb 2022 · 1 min read

बालू का पसीना "

बालू का पसीना ”
जनवरी की सर्द सुबह
सामोद का वातावरण
बिखरी कमकंपित ओस
अक्सर याद आते है,
राज संग मेरा भ्रमण
कच्ची पगडंडियों पर
बच्चों की किलकार
अक्सर याद आते है,
धांसू थार को मचकाना
आजाद जी का चलाना
खेत का जलेबी सा रास्ता
अक्सर याद आते है,
बिशनगढ़ का सिला टीबा
पहाड़ की मौसमी तलहटी
झुंडे का खिला परिवार
अक्सर याद आते है,
एक टिब्बे की पीठ पर
मीनू को सहसा दिखना
बालू माटी का पसीना
अक्सर याद आते है,
पेड़ों का लदा झुरमुट
शर्मीली वो मूंगफली
बकरी के चंचल मेमने
अक्सर याद आते है।

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