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15 Feb 2022 · 2 min read

मतदाता होने का अहसास!

जैसे ही थमा चुनावों का शोर,
घर में जमा होने लगा पर्चियों का ठौर,
जितने दल,
उससे अधिक प्रत्याशी,
पर्चियां इक्कठी हो गई अच्छी खासी,
आखिर आ ही गया वह वक्त,
जब हमें करना था किसी को सशक्त,
उसे मतदान करके,
अपना भाग्य विधाता बनाने को,
और फिर उसी के आगे पीछे,
रह जाना है चक्कर लगाने को!
निकल पड़ा मैं,
और,
मुझ जैसे और,
अपने अपने पसंदीदा,उम्मीदवार को,
वोट करने,
और अपने से असहमत पर,
वोट की चोट करने!
पंक्तियों में जा कर,
मैं भी खड़ा हो गया,
कोरोना के प्रोटोकॉल में बंध कर,
चेहरे पे मास्क लगाए,
मीटर भर की दूरी बनाए,
धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे,
मतदेय स्थल की ओर,
आहिस्ता आहिस्ता खिसक रहे थे!
बस अब आ ही गया मैं निकट,
जहां जांच हो रही थी,
ग्लव्स दिए जा रहे थे,
सैनिटाइजर छिड़का जा रहा था,
मोबाइल जमा कराया जा रहा था,
इन सब से निपट कर,
पहचान की बात की गई,
मैंने भी पर्ची निकाल कर,
सामने पर रख दी,
चेहरे का फोटो से मिलान किया गया,
फिर नाम के क्रम के अनुसार,
सूची से मिलान किया गया,
एक कदम आगे बढ़ने को कहा,
उसने भी आपचारिक तौर पर,
पहचान पत्र देख कर,
एक और पर्ची थमा दी,
फिर से आगे बढ़ने की सलाह दी,
एक कदम आगे बढ़ते हुए,
जहां हम पहुंचे,
वहां पर पर्ची जमा कर,
उंगली पर स्याही लग गई,
और तब जाकर मुझे,
मंजिल मिल गई,
मशीन पर मन मुताबिक,
प्रत्याशी को जांचा परखा,
नाम, चुनाव निशान को देखा भाला,
और फिर उंगली को आगे कर,
बटन को दबा दिया,
थोड़ी सी हरकत हुई,
बत्ती जली,
वी वी पैट पर,
वही निशान आ गया,
और मशीन ने भी अपना
काम निभा दिया,
एक सूरी ली आवाज ने,
हमें भरोसा दिला दिया!

अब तक अपने को,
एक जिम्मेदार नागरिक मान कर,
मैं फुला जा रहा था,
अब मैं मतदेय स्थल से,
खाली खाली सा लौट रहा था,
इस उधेड़बुन में,
क्या मैंने सही व्यक्ति चुना है,
क्या वह जीत भी रहा है,
जाने कितने विचार आ जा रहे थे,
मुझे बार-बार विचलित किए जा रहे थे,
आसान नहीं है,
मतदाता होने का फर्ज निभाना,
एक थोड़ी सी चूक पर,
पांच साल तक पछताना,
और फिर पांच साल बाद,
वही सब कुछ सामने हो,
मुल्याकंन करने का अवसर भी हो,
और मुल्याकंन कर भी लिया हो,
मतदान कर ही लिया हो,
परन्तु औरों से विचार न मिल सकें,
जिसे अच्छा समझा हो,
वही औरों को ना भा सके,
और बहुमत से दूर रह जाए,
तब मन में एक कसक सी भर जाए,
वह हो ना सका,
जो सोचा था,
वह परिणाम मिल ना सका,
जो चाहा था!
आसान नहीं है मतदाता होने का अहसास!
मतदान कर के भी होता रहता है,
खाली पन का आभास !

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