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12 Feb 2022 · 1 min read

ज़िन्दगी को यूँ काँधों पे….

रफ़्ता-रफ़्ता मैं साँसों को खोता रहा।
ज़िन्दगी को यूँ काँधों पे ढोता रहा।।

अजनबी सी मेरी हो गई ज़िन्दगी,
हिज्र के मोड़ पर खो गई ज़िन्दगी,
लाख ढूँढा मगर वो न आयी नज़र-
स्वप्न मिलने का फिर भी सँजोता रहा।।

रफ़्ता-रफ़्ता मैं साँसों को खोता रहा।
ज़िन्दगी को यूँ काँधों पे ढोता रहा।।

ख़ौफ़ खाया भँवर से न मझधार में,
हौसला भी रहा ख़ूब पतवार में,
पार दरिया के जाती मगर किस तरह-
वक़्त ही नाव मेरी डुबोता रहा।।

रफ़्ता-रफ़्ता मैं साँसों को खोता रहा।
ज़िन्दगी को यूँ काँधों पे ढोता रहा।।

एक घर है मेरा दर्द के गाँव में,
मुस्कुराते हुए छाले हैं पाँव में,
और है “अश्क”इतनी रवानी लिये-
जो मुसलसल ही दामन भिगोता रहा।।

रफ़्ता-रफ़्ता मैं साँसों को खोता रहा।
ज़िन्दगी को यूँ काँधों पे ढोता रहा।।

©अश्क चिरैयाकोटी

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 2 Comments · 899 Views
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