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11 Feb 2022 · 1 min read

एक बेटी की अनुभूति पापा के लिए

मैं जब मां की कोख में आई थी
पापा के चेहरे पर खुशी छाई थी

सबकी बेटे के लिए फरमाइश थी
बेटी चाहिए पापा की ख्वाहिश थी

मेरे जन्म लेने पर सभी उदास थे
सिर्फ मेरे पापा ही मेरे पास थे

पापा ने अपनी खुशी यूं बांटी थी
अपनी क्षमतानुसार मिठाई बांटी थी

सारे परिवार ने पापा से नाराजगी दिखाई
बेटे की चाहत थी फिर बेटी क्यों आई

मां को मेरे पैदा होने का दोषी बताया
बेटा पैदा ना होने का दुख जताया

मां पापा को घर से निकाल दिया
मेरे होने का उनसे यूं बदला लिया

धीरे धीरे मैं बड़ी होने लगी
तरह तरह के सपनों में खोने लगी

एक दिन जब मैंने खिलौना मांगा था
हंस कर पापा ने साईकल पर झोला टांगा था

शाम को पापा खिलौना लेकर आये थे
पता नही क्यों वापिस पैदल ही आये थे

मेरे जन्मदिन पर मुझे दिया एक गहना था
पापा ने उस दिन भी पुराना कुर्ता पहना था

मुझे खुश रखने की भरपूर कोशिश करते थे
मुहं छिपा कर चुपके छुपके रोया भी करते थे

अब मैं भी पापा के प्यार को समझने लगी हूँ
अब फरमाइश नही करती बस पढ़ने लगी हूँ

एक दिन पढ़ लिख कर बड़ा अफसर बनना है
पापा की खुशियां लौटा सकूँ बस यही सपना है

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