Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
11 Feb 2022 · 1 min read

चीरहरण

चीरहरण

चुभते हैं इस ज़माने को मेरे खुले विचार
मुझे उनकी तीक्ष्ण पैनी निगाहों की धार
जो बाण सी चीरती आड़ मेरे दुकूल की
चिथड़े चिथड़े कर देती है मेरी लाज की

पहना हो मैंने कुछ भी,ज़्यादा या कम
उनकी नज़रें वसन पर ही जाती है थम
कपड़ों से ही क्यूँ आंकी जाती है नारी
झट चरित्र तोलने लगते ये धर्माधिकारी

स्कर्ट पहनी है तो क्या ही संस्कारी होगी
जींस वाली की तो मति ही मारी होगी
जो पहना होगा सूट तानों में होगी थोड़ी छूट
अंग्रेज की औलाद हो क्या जो पहना है बूट

कुर्ते की लम्बाई तय करती मेरा किरदार
छोटे कपड़ों वाली कभी न होगी वफ़ादार
साड़ी में मिल गया लाइसेन्स सभ्यता का
हाफ़ पैंट में तो लगा ठप्पा निर्लज्जता का

ये नज़र तुम्हारी जाने क्या क्या आँक लेती है
दुपट्टे पर मेरे न जाने कितने दाग टाँक देती है
फ़र्क़ क्या होगा जो मैं ढक भी लूँ पूरा तन
उन्हीं नज़रों से तुम फिर करोगे मेरा चीरहरण

अब कहीं कृष्ण नहीं जो रख लेगा मेरी लाज
मैं क्या पहनूँ न पहनूँ ये क्यों तय करे समाज
कम कपड़ों वाली नही देती खुला निमंत्रण
अपनी संकीर्ण सोच पर तुम करो नियंत्रण

नही किसी राम का इंतज़ार जो करे मेरा उद्धार
नारी हूँ ,मैं ख़ुद लूँगी अपनी तक़दीर संवार
तुम अपनी बौनी घिनौनी मानसिकता बदलो
बस भी करो दुशाषण की खाल से निकलो

मेरी पुस्तक ‘रेखांकन’ से
मेरी इस प्रस्तुति ने IIP-सीजन ३ -राष्ट्रीय स्तर की काव्य प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त किया है।

Loading...