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5 Feb 2022 · 2 min read

√√बिना कार के वह दिन अच्छे (गीत)

बिना कार के वह दिन अच्छे (गीत)
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बिना कार के वह दिन अच्छे थे ,छोटा संसार था
(1)
गलियाँ थीं पतली लेकिन दिल सबका बहुत बड़ा था
सुख-दुख में संपूर्ण मौहल्ला सबके साथ खड़ा था
छत-मुँडेर पर बैठ पड़ोसन अम्मा से बतियाती
दूध चाय की पत्ती चीनी घर-घर आती-जाती
पापड़ बनते थे जाड़ों में मिलाजुला परिवार था
(2)
छत पर कर छिड़काव गर्मियों में खटिया पर सोते
मिट्टी की उस खुशबू के कुछ अर्थ और ही होते
खस की पट्टी पर दोपहरी-भर पानी पड़ते थे
कौन आम की गुठली खाएगा इस पर लड़ते थे
सुबह दाल के पत्ते गर्म जलेबी का व्यवहार था
(3)
पैदल चल- चल कर ही सारा शहर घूम कर आते
डिग्री कॉलेज में पढ़ने को साइकिल से जाते
टेलीफोन रखा जिस घर में आलीशान कहाता
पी. पी. नंबर रिश्तेदारों में बँटवाया जाता
पता सभी को कौन-कौन किस-किसका रिश्तेदार था
(4)
कमरों में उन दिनों खिड़कियाँ, होते रोशनदान थे
खुले हुए आँगन वाले ही सबके बड़े मकान थे
मठरी और समोसे सबके घर बनते पकवान थे
घर पर पिसे मसालों से सब भरे मसालेदान थे
ऊन-सिलाई मतलब स्वेटर फिर डाला इस बार था
(5)
टोस्ट सेंकती अंगीठी , होते पुआल के गद्दे
सिले टाट के वह बोरों-से लगते तनिक न भद्दे
गर्मी में पंखा हाथों से रहते सभी झुलाते
लोरी गाती माँ , कहानियाँ बाबा रोज सुनाते
उसको लोग समझते अच्छा ,जिस पर नहीं उधार था
( 6 )
जब से कार खरीदी पतली गली पुरानी खलती
वही मौहल्ला पीढ़ी-दर-पीढ़ी का लगता गलती
रोज परेशानी में रहते कार नहीं आ पाती
बिना कार के आए- जाए गली मात खा जाती
बेचा पुश्तैनी मकान जो यादों का भंडार था
( 7 )
बसे नई कालोनी में फ्लैटों में रहने आए
दूर – दूर तक दर्शन सुंदरतम चुप्पी के पाए
यहाँ पड़ोसी तक कब था अपना जाना- पहचाना
यहाँ कहाँ चलता था सबका घर-घर आना- जाना
यहाँ कार के बिना आदमी बिल्कुल ही बेकार था
( 8 )
अब चौड़ी सड़कें हैं घर के आगे चमचम करतीं
कुत्ते-बिल्ली शक्ल दिखाती कॉलोनी में डरतीं
खुली- खुली है जगह बगीचा फूलों से महकाता
फिर भी मन कब लगता घर के बाहर जब भी आता
अपनों का ही चित्र हमेशा अनुपस्थित हर बार था
बिना कार के वह दिन अच्छे थे, छोटा संसार था
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रचयिता: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश)*
मोबाइल 9997 61 5451

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