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4 Feb 2022 · 3 min read

*"ममता"* पार्ट-5

गतांक से आगे. . .
सेठजी बोले महात्मा जी पूरी बात बताइए, हम सब व्याकुल हो रहे हैं…
महात्मा जी बोले साहूकार जी की बहू ने तो निस्वार्थ भाव से एक माँ की ममता के कारण उस बच्चे को अपना दूध पिलाया था. मगर उन दोनों पक्षियों पर इसका अलग अलग प्रभाव पड़ा. एक इस वात्सल्य के वशीभूत होकर सोचने लगा काश मैं इस नौकरानी का पुत्र होता, और दूसरे के मन में इस घटना के कारण वैराग्य का भाव उत्पन हो गया. और उस नौकरानी ने मन में विचार किया कि समय आने पर वो इस दूध का हिसाब जरुर चुकाएगी. तो हे गाँव वालों प्रभु की कृपा से उस घटना के सभी पात्र इस जन्म में फिर से एक साथ मिल गए हैं. आप की बहू उस जन्म के साहूकार की वो बहू है जिसने अपनी नौकरानी के बच्चे को अपना दूध पिलाया था. और ये गाय वही नौकरानी है जिसने बहू से दूध का हिसाब करने का संकल्प किया था, इसी वजह से वो आज इसके बच्चों के लिए अपना सारा दूध देना चाहती है. और ये बछड़ा उन दो पक्षियों में से एक है जिसके मन में ये विचार आया था की काश मै इस नौकरानी का पुत्र होता, और इस जन्म में आज बछड़े के रूप में उसी का पुत्र बना हुआ है.
तभी राजेश ने पूछा महाराज उस दूसरे पक्षी और बच्चे का क्या हुआ और आपको ये सब कैसे मालूम है…
महात्मा जी हंसने लगे और बोले बड़े भोले हो तुम, अरे मैं ही तो वो दूसरा पक्षी हूँ जिसके मन में उस घटना के बाद वैराग्य का भाव उत्पन्न हो गया था जिसके कारण इस जन्म में सन्यासी बना. और रही बात उस बच्चे की तो वो बच्चा तो अबोध था. इसलिए उसका इस समय यहाँ होना जरुरी नहीं है. बहू ने गाय को नहीं पहचाना क्योंकि उसके मन में उस वक्त कोई भाव नहीं था. मगर गाय ने उसे पहचान लिया, क्योंकि उसके मन में वो हिसाब बाकी था. इस बछड़े ने सिर्फ मुझे देख कर हलचल की क्योंकि मैं उस वक्त उसके साथ था. मगर ये दोनों बोल नहीं सकते इसलिए अपनी बात कह नहीं पा रहे हैं. और मेरा आना भी विधि का विधान ही है क्योंकि आज उस घटना का प्रतिफल पूर्ण होना है. आज के बाद हम फिर शायद कभी ना मिलें और ये मानसिक याद शायद अगले जन्म में ना रहे.
दादीजी ने हाथ जोड़ कर पूछा… तो महाराज अब क्या करें…
महात्मा जी बोले आप अपनी बहू को कहें कि वो गाय को तिलक करके उसके गले में मोळी बाँध कर उसके कान में कह दे कि हे सखी तुमने अपना उधार चुका दिया है अब और परेशान मत हो, हमारा पुराना हिसाब पूरा हो गया है…
हे महानुभावों ये विधि का विधान है जो जैसा कर्म करेगा उसे उसी के अनुरूप फल मिलेगा. कर्म तो हम चार ने ही किया था और आज उस कर्म की पूर्णाहुति के अवसर पर हम चारों यहाँ मौजूद हैं, इसलिए कभी किसी का बुरा ना सोचो, ना बोलो, और ना करो. तथा कभी किसी का अच्छा करो तो भी उसके प्रतिफल के बंधन में मत बंधना…
अलख निरंजन… इति…

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