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2 Feb 2022 · 1 min read

कैसे संवरे भारत की तकदीर ,?

हंगामें तो रोज़ ही खड़े होते हैं मगर ,
जाने क्यों सूरत फिर भी नहीं बदलती।

कुछ भी कर लो जतन मगर हाय !,
इस मुल्क कि तक़दीर नहीं बदलती।

एक क़दम बढ़ाना भी हुआ मुश्किल ,
इसकी सरज़मीं अब आग है उगलती।

शराफत का नक़ाब ओढे रहता हर इंसा ,
यूँ उसके अंदर हैवानियत है सदा पलती।

समझकर खिलौना बेक़सूर, बेबस जिंदगी को ,
किस कदर शैतानो कि नियत है बदलती।

थक भी जाएँ कानून और इंसाफ से झूझते ,
जंग यह किसी इन्केलाब को नहीं बुलाती।

ऐ चमन के फूलों-कलिओं !बन जाओ अब शोले ,
इस गुलिस्तां से तुम्हारी हिफाज़त की नहीं जाती।

कैसे संवरे आखिर भारत कि धुंधली तस्वीर ,
रंग -ऐ-जोश में किसी भी लिहाज़ से नहीं ढलती।

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