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2 Feb 2022 · 1 min read

गुमराह

कर रहा गुमराह खुद सरदार अब ।
कैंसे मंजिल पाएं , बरखुरदार अब ।।

तोड़कर तटबंध सारे बह रही ।
इस नदी में है कहाँ मझधार अब ।।

अपने अपने फोन में सब व्यस्त हैं ।
मिलने जुलने के नहीं दिन चार अब ।।

टूटकर घर पुराने गिरते गए ।
मिलेंगे किस्सों में देहरी द्वार अब ।।

रात भर जिसने बिखेरी रोशनी ।
वह दिया भी हो गया लाचार अब ।।

सच कहीं दिखलाई देता है नहीं ।
लग रहे हैं झूठ के अम्बार अब ।।

रात में चोरी डकैती अब कहाँ ।
दिन दहाड़े लुट रहे बाजार अब ।।

– सतीश शर्मा, नरसिंहपुर
मध्यप्रदेश

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