झगड़े में पड़ी फिक्र (गीतिका)
झगड़े में पड़ी फिक्र (गीतिका)
■■■■■■■■■■■■■■■■■■
(1)
मुझको न फिक्र हिंदू मुसलमान की पड़ी
झगड़े में पड़ी फिक्र तो इंसान की पड़ी
(2)
झगड़े में रोजगार है चौपट गरीब का
नेता को सियासी नफे-नुकसान की पड़ी
(3)
झगड़े में आम आदमी को जान की पड़ी
नेता को कुर्सियों की घमासान की पड़ी
(4)
नेता जी वोट-बैंक बढ़ाने में लग गए
कर्फ्यू था किन्तु फिक्र बस मतदान की पड़ी
(5)
मुझको हरे न केसरी पहचान की पड़ी
झगड़े में तिरंगे की फिक्र शान की पड़ी
■■■■■■■■■■■■■■■■■
रचयिता: रवि प्रकाश,बाजार सर्राफा,
रामपुर (उ.प्र) मो. 9997615451