फनकार फिर रोया बहुत ( गीतिका)
फनकार फिर रोया बहुत ( गीतिका)
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(1)
मिल गई पदवी मगर, इसके लिए खोया बहुत
जी- हजूरी कर तो ली ,फनकार फिर रोया बहुत
(2)
सौ बरस जीवन मिला, वरदान पर कैसे कहूँ
देह को अंतिम दिनों में देर तक ढोया बहुत
(3)
रात के अंतिम पहर तक, काम सब निपटा लिए
चैन की फिर नींद उसके बाद वह सोया बहुत
(4)
दंड फाँसी का मिला था, वह नहीं बदला गया
जेल में अच्छे चलन से दाग यों धोया बहुत
(5)
हाथियों के पैर में आकर सुरक्षित कब रही
मोतियों को लाख कसकर उसने था पोया बहुत
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा,
रामपुर ( उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 9997615451