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24 Jan 2022 · 1 min read

दो मुक्तक

दो मुक्तक
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जिंदगी
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सोचिए तो किस लिए हमको मिली है जिंदगी ,
शूल के संँग फूल सी डाली खिली है जिंदगी ,
अब हमें हर दर्द अपना यार सा लगने लगा ,
पांव के छालों सरीखी नित छिली है जिंदगी ।

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मोबाइल
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तार, चिट्ठी, कैमरा, घड़ियां, कलेंडर, खा गया ।
हाथ में जब से हमारे ये मो’बाइल आ गया ।।
है बहुत बेदर्द बचपन को निगलने अब लगा ।
जब से बच्चों‌ के दिलों‌ को ये निगोड़ा भा गया ।।
०००
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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