हंसते हंसते
हंसते हंसते कहीं
एकाएक आंख भर आई
गला सूखने लगा
दिल एक सूखे पत्ते सा कांपने लगा
रूह सहम गई
एक सर्द हवा की शीत लहर
एक गर्म सुलगते रेगिस्तान के
हृदय स्थल पर कहीं चल गई
यह एक सूखे हुए
बिना पत्तों के दरख्त की
गहरी दूर तक फैली
एक तने सी जड़
यकायक बिना तेज धार वाली
आंधियों के बिना चले ही
कैसे कट गई
कैसे अपनी जगह से हट गई
कैसे खुद से ही छिटककर
दूर कहीं एक प्रकाश की किरण को तरसती
अंधेरे से एक कोने में जाकर
औंधे मुंह पड़ गई।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001