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18 Jan 2022 · 1 min read

आ गए तुम

आ गए तुम

द्वार खुला है अंदर आऔ…?
तनिक ठहरो

डयोढी पर पड़े पायदान पर
अपना अहम जाड़ आना…!

मधुमालती लिपटी हुई हैं मुंडेर से
अपनी नाराजगी वहीं
उंडेल आना

तुलसी के कयारे में
मन की चटकन चढा आना..?

अपनी व्यस्तताऐ
बाहर खुटी पर ही टांग आना
जुतो संग हर नकारात्मक
उतार आना..!

बाहर किलोलते बच्चों से
थोड़ी शरारत मांग लाना…!

वो गुलाब के गमले मे मुस्कान लगी है,
तोड कर पहन आना..?

लाओ अपनी उलझनें
मुझे थमा दो,
तुम्हारी थकान पर
मनुहारो का पंखा जला दु..!

देखो शाम बिछाई है मैने,
सुरज क्षितिज पर बांधा है,
लाली छिटकी है नभ पर…!
अभिषेक बोस विशाला

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