Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
17 Jan 2022 · 1 min read

समझौता

जीवन के हर एक क्षण से
समझौता हम करते आए!
पर पीड़ा उर मे ढाँपे
विस्मृत खुद को करते आए!!

पड़ा सीखना प्रबल गति की
आशा को बंधन देना!
अपनो के अवरूद्ध कंठ को
स्मित का आँचल देना!!

इन्ही अनुभवों के संचय में
पके केश गिरते पाये!
पर पीड़ा उर मे ढाँपे
विस्मृत खुद को करते आये!!

आयु के लगभग सभी पृष्ठ
हौले-हौले बस गये बिखर!
सूनेपन की तीव्र चुभन
छलनी कर गयी हृदय का दर!!

मुट्ठी मे छिपे अपूर्ण स्वप्न
मिट्टी में मिलते पाये!
पर पीड़ा उर मे ढाँपे
विस्मृत खुद को करते आये!!

स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ

Loading...