मिथ्या यह संसार।
मानों भ्रम जग का नहीं, मिथ्या यह संसार।
झूठी जग की नौकरी, झूठा जग का प्यार ।
झूठा जग का प्यार ,हम सबने यह माना |
सत की हो पहचान ,बोध यह सबने जाना।
कहें ‘प्रेम’ कवि राय, शोध जग का अब जानों।
झूठा है व्यापार , अनियमित जीवन मानो ।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम