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11 Jan 2022 · 1 min read

'मुस्कान'

खिलती हैं कलियाँ भी,
देख मुस्कान तुम्हारी,
महकी सी लगती है फिर,
घर की क्यारी-क्यारी।
मेघ भी आसमान में,
बिखर गया पंख पसारे,
चाँद ने भी चाँदनी अपनी,
तेरी मधुर मुस्कान पर दी वारी।

देखकर मधुर मुस्कान तेरी,
क्षण भर दुख मैं बिसर गया।
मन में उल्लास संचरण से,
वदन भी कुछ निखर गया।
अधर तनिक विस्तृत हुए,
कपोल भी हुए संकुचित ,
दंत की कांति दमक उठी,
चंचल मन भी ठहर गया।

प्रकृति प्यारी सबकी दुलारी,
छटा तेरी है बड़ी मनभावन,
तू ही तो है मुस्कान धरा की,
है तू ही मधुबन और उपवन।
मिटे न कभी ये मुस्कान तेरी,
करे सभी कुछ तो ऐसा जतन,
तेरी ही मुस्कान में बसता है,
जगत के जीवन का स्पंदन।

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