ठंडक कल से ज्यादा आज पड़ी【गीतिका】
ठंडक कल से ज्यादा आज पड़ी【गीतिका】
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रोज यही लगता है ठंडक कल से ज्यादा आज पड़ी
रोज लबादा एक और बढ़ जाता मुश्किल बहुत बड़ी
{2}
घर से बाहर जाना सर्दी में अब किसके बस में है
घर से निकलो कोहरे की दीवार दीखती एक खड़ी
{3}
सूरज दादा कहीं दबा दुम छिपकर बैठ गए हैं
सर्दी से केवल अंगीठी ही छोटी- सी दिखी लड़ी
{4}
रेंग-रेंग कर चलता है दिन रेंग-रेंग कर रातें भी
आफत की इस सर्दी में यह लगता जैसे साँस अड़ी
{5}
कुछ ही दिन की बातें हैं यह जाड़ों की तानाशाही
फिर मौसम मस्ताना होगा फिर होगी खुशनुमा घड़ी
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रचयिता: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उ.प्र.) मो. 9997615451