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31 Dec 2021 · 1 min read

बदल रहा फिर से एक वर्ष

बदल रहा फिर से एक वर्ष
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बदल रहा फिर से एक वर्ष।

तूफानों से जूझ जूझ कर
अंधियारों से लड़ते भिड़ते
बड़े-बड़े बगुले भी रोते
देख-देख चूजे का हर्ष।

बदल रहा फिर से एक वर्ष।

मजदूरों की रोटी रोती
रह जाती है खाली थाली
गद्य पद्य नाटक रोते हैं
लगी भूख,कैसा उत्कर्ष!

देखो बदल रहा है वर्ष।

कैसी करुणा,भाव अनोखे
अपनो पर कैसा विश्वास
सबकी माया छल ही जाती
क्यूँ,कैसे कोई पाये हर्ष ?

बदल रहा फिर से एक वर्ष।

प्रेम सुधा की साँस मधुर
मधुर रहे जीवन की आस
सब जन प्रमुदित हों,झूमें गाएं
सदा हर्ष ही हो निष्कर्ष!

देखो बदल रहा है वर्ष।
फिर से बदल रहा एक वर्ष।
–अनिल मिश्र,प्रकाशित

आंग्ल नव वर्ष पर सभी मित्रों को अनंत मंगलकामनाएं!?????

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