इस इश्क में
रूठना मनाना रोना रुलाना
ये सब भी ज़रूरी होता इश्क में
हो अगर शिकवे शिकायत
चार चांद लग जाते है इश्क में।।
हो न अगर इंतज़ार
तो क्या मज़ा है इश्क में
आती रहे उसकी याद
यही तो मज़ा है इश्क में।।
दिखे जब वो सपने में
नींद खुल जाती है इश्क में
काश थोड़ा और सो पाते
तो मुलाकात हो जाती इश्क में।।
हो महबूब की खुशबू जिसमें,
मज़ा देती है वो हवा भी इश्क में
ज़िक्र भी होता है उसका कहीं
बहुत सुकून मिलता है इश्क में।।
दोस्तों की महफिल में भी
अकेला महसूस करते हैं इश्क में
जब वो डांटती है कभी तुम्हें
वो डांट भी गज़ल लगती है इश्क में।।
मिलन ही नहीं विरह भी
ज़रूरी होता है इस इश्क में
सात जन्मों का सुख तो
एक पल में मिलता है इश्क में।।
ज़्यादा लालच अच्छा नहीं
वक्त जितना भी मिला इस इश्क में
हर पल आखिरी है ये सोचकर
उस पल को मिलकर जियो तुम इश्क में।।