दिल के संदूक में बंद खतों की यादें …
कभी इश्क की चाशनी लिए ,
कुछ खट्टी मीठी नोक झोंक ,तकरार ।
कुछ घरेलू गंभीर मुद्दे लिए,
या पास पड़ोस ,दुनिया भर का समाचार।
कभी नन्हें से खत समेट कर सारे एहसास ,
तो कभी दो परतों में सारा अफसाना ।
भेज कर नाम और पते के साथ ,
पूरी आशा और विश्वास लिए ।
किसी पोस्ट बॉक्स में पोस्ट किया जाता था ।
और फिर खत के जवाब का वोह बेसब्री से इंतजार ।
यह इंतजार कई महीनो में खत्म होता था ।
मगर उसका जवाब हाथ में आते ही कई गीले शिकवे,
मिटा देता था ।
और इसी तरह वो सवाल जवाब का सिलसिला ,
चलता ही रहता था जीवन भर ।
और यह सिलसिला मधुर यादों के रूप में किसी खजाने की तरह संजो कर रखा जाता था ,
किसी संदूक में ।
सच ! वो जमाना ही कुछ और था ।
अब न वोह खत ,
ना डाकिए ,
और न ही पोस्ट बॉक्स ।
और न ही खत की महत्ता।
जमाना कितना बदल गया न !
मगर दिल के संदूक में अब भी सब बातें ,
बंद हैं।
अब वो खत तो नही हमारे पास ,
मगर उसकी यादें इस संदूक में बंद है।