चुनावों का मौसम आ रहा है …
चुनावों का मौसम आ गया ,
अब जल्दी से कमर कस लो।
फैला दो अपना जाल आश्वासनों का ,
और भूले हुए वायदे याद कर लो।
पंछी रूपी जनता को फंसाना है।
लुभावनी योजनाओं के दाने तैयार कर लो।
खूब धन एकत्र करना है बांटने को ।
और शराब की बोतलें मुफ्त में पिलाने को।
वोटों की खातिर गिरना पड़े जमीर से भी तो गिर लो।
मगर बस किसी तरह वोट हासिल कर लो ।
एक बार सत्ता हाथ में आ जाए ,
फिर कौन पूछता है!
कौन सी जानता ,? कैसे वायदे !?
चुनावों का मौसम आ रहा है भाई !