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11 Dec 2021 · 1 min read

शर्त...

बेशक तुम मुझे, गलत ही समझ लो
पर अपने सही होने का, इत्मीनान कर लेना…

नहीं रोने तुम्हारे दरवाजे, आकर मुझे गम
चाहे जितने ऊँचे, अपने मकान कर लेना…

सुनसान सड़क की, वो सर्द रात याद है मुझे
याद है पुकारने पर, सबके बंद कान कर लेना…

दो वक्त की रोटी के बदले, ईमान ना गिरवी रखूँ
चाहे मेरे हक़ दौलत भी, अपने नाम कर लेना…

जिंदगी जीने की शर्त, महज ‘जीत’ रखी मैंने
चाहे जितने मुश्किल, इम्तहान कर लेना…
– ✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’

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