पलायन
वो जा रहा है ….
नैनो में अजस्र अश्रु धारा ,
थका मन ,बोझिल पग लिए ,
कंधे पर संतति और पीठ पर ,
गृहस्थी अपनी का बोझ उठाए ।
अपने संदूकों में सपनों को बंद कर ,
आशाओं /निराशाओं के विचारों में गोते खाते हुए ।
मौत से अपने और स्वजनो को बचाते हुए ,
ज्ञात नहीं ,परंतु यह तो विधाता जाने ,
यह प्रयास कितना सफल होगा ,कितना असफल ,
मगर फिर भी वो जा रहा है निरुदेश्य ,निरुपाय,
बेरोजगार मजदूर शहर से दूर गाँव की ओर ,
तपती सड़कों पर अपने नंगे पैरों के निशान बनाते हुए ।