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8 Dec 2021 · 1 min read

घड़ियां इंतजार की ...

क्यों लंबी होती हैं घड़ियां इंतजार की,

लय बढ़ने लगती है दिल-ऐ-बेकरार की।

हर एक लम्हा बड़ी मुश्किल से कटता है,

धीमी हो जाती जैसे चाल वक्त के रफ्तार की।

यह इंतजार कितना है भारी वो क्या जाने,

जिस पर न गुजरी हो कभी घड़ी इंतजार की।

उम्मीद/नाउम्मीदी के बीच झूलता यह इंसा,

नहीं समझ पाता रज़ा बेरहम तकदीर की।

अश्कों को तो समझा दे ये ” अनु” किसी तरह,

मगर क्या दवा करे अपने दिल-ए-बेकरार की।

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