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19 Nov 2021 · 1 min read

मन के भाव

******** मन के भाव ********
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भानु सी अंगीठी में तप रहे हैं,
अंगार सी गर्म सांसें उगल रहें हैं,
उसके नर्म लाल लहू से अधर,
व्याकुल हैं मिलन को मेरे अधर
जो हैं अशांत,अतृप्त, झुलसे हुए,
वियोग की चलती झुलसती लू से,
पिंघला देंगे मेरे अंदर का जमा लावा,
जो जमा हुआ है मेरी भुपर्पटी पर,
वर्षों से तरसता उसके अनुराग को,
जो मिलते ही कर देंगे क्षत-विक्षत,
मेरे प्यासे तड़फते तन – मन को,
उसके अंगारों से दहकते अंग-प्रत्यंग,
सांसों की उष्मा और बदन की खुश्बू,
और अकस्मात बरसता प्रेम-प्रहार,
हर्षोल्लास,मद्धिम मधुरिम मुस्कान,
मुखमंडल पर बदलते हाव – भाव,
प्रवर्तित चेहरे का गुलाबी होता रंग,
प्रेम बरसात में भीगते मस्त अंग-अंग,
कर देंगे तपती काया को विखंडित,
उडेल देंगे जमाने भर की खुशियाँ,
मेरे मन मन्दिर में खूब भीतर,
कर देंगे अपूर्ण प्रेमिल स्वप्नों को सन्तुष्ट,
और कर देंगे मुझे पूर्णिमा के चाँद सा रोशन,
शालीन,शान्त,सहज,सरस और तृप्त,
और छोड़ जाएगी फिर वो मुझे एकांत,
इस निष्ठुर,निर्दयी संसार में अकेले तरु सा,
निज अविस्मरणीय मदहोश यादों के सहारे,
प्रदत्त खुशियों और प्रेम अनुभूति संग,
शेष जीवन को जीने मनसीरत बदहाल……।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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