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14 Nov 2021 · 3 min read

वायुधर : 22 वीं सदी की आत्मकथा (हास्य व्यंग्य)

वायुधर : 22 वीं सदी की एक आत्मकथा
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वह भी क्या जमाना था जब सांस लेने के लिए कोई पैसा खर्च नहीं करना पड़ता था। जहां चाहे बैठ जाओ, खड़े हो जाओ, चलते रहो और सांसें मुफ्त में लोग लिया करते थे। तब इसकी अहमियत कहां पता चलती थी।आज जब ₹22000 का 40 दिन का स्वच्छ वायु का पैक पड़वाना पड़ रहा है, तब पता चलता है कि सांस लेना कितना महंगा और खर्चीला काम हो गया। वायुधर रिचार्ज नाम से एक नई चीज चली है। हाथ में घड़ी की तरह से बांध लो और चालू कर दो, तो हमारे चारों तरफ शुद्ध वायु का एक घेरा बन जाता है। ₹22000 में 40 दिन चलता है । उसके बाद फिर रिचार्ज कराना पड़ता है । समझ लो कि आधी आमदनी इसी में खर्च हो जाती है ।
परिवार में सभी को अलग अलग वायु धर रखना पड़ता है। वायु धर तो इसका नाम लोगों ने रख दिया है । वैसे तो बड़ा लंबा चौड़ा अंग्रेजी का नाम है। लेकिन क्यों कि इसको पहनने से स्वच्छ वायु मिल जाती है, इसलिए इसे वायु धर कहने लगे।
घर में जितने सदस्य हैं सबको एक-एक वायुधर चाहिए । सबको बराबर की स्वच्छ वायु का रिचार्ज चाहिए। सांस लेना दूभर हो गया है । घर के अंदर घुसे, तो सारे खिड़की दरवाजे बंद करने पड़ते हैं। एक घर के लिए घर के अंदर में वायुधर लगा रखा है ,जिसका खर्च भी ₹30000 है। घर में तो एक वायु धर से काम चल जाता है, लेकिन घर से बाहर निकलते ही धूल, कूड़ा , रासायनिक पदार्थों का हवा में जमाव इतना ज्यादा हो जाता है कि सांस फूलने लगती है । खांसी आने लगती है । दो-चार मिनट भी अगर घर के बाहर बिना वायु धर के कोई चला जाए तो उसका दम घुटने लगता है।
आह ! पुराने जमाने में दादा परदादा का जो युग था, उसमें इन बातों पर खर्चा कहां होता था ? कितना खुला नीला आसमान होता था। साफ वायु होती थी। मजे में जितनी चाहे सांसे लो । गहरी सांस लेकर छोड़ना- उसका मजा ही कुछ और था। जहां तक पीने के पानी का सवाल है , इस काम पर भी खर्चा करीब सौ साल पहले से शुरू होने लगा था । पानी की सीलबंद बोतलें खरीदी जाती थीं । इसके अलावा घरों में पानी साफ करने की मशीनें लगी रहती थीं। लेकिन यह सब पीने के पानी के लिए हुआ करता था। अब जमाना बदल गया। अब तो हालत यह हो गई है कि पीने के पानी की बात छोड़िए ,हाथ धोने के लिए और नहाने के लिए भी साफ पानी तैयार करना पड़ता है। उसके लिए भी पैसा खर्च करना पड़ता है।
नदियों की हालत इतनी खराब है कि उस में नहाना तो छोड़िए हल्की सी डुबकी भी नहीं लगाई जा सकती । एक जमाना था जब नदी का पानी बोतल में लेकर लोग घर ले आया करते थे और महीनों नहीं बल्कि वर्षों तक उसको रखा करते थे और बहुत शुभ माना जाता था।
……खैर छोड़िए ! इस समय की सबसे बड़ी जो मुख्य समस्या है , वह यह है कि वायु धर ब्लैक में मिल रहा है। यानी 40 दिन का रिचार्ज एक लाख रुपए में हो रहा है । यह रकम इतनी ज्यादा है कि उसको आसानी से कोई भी व्यक्ति वहन नहीं कर सकता। क्या खाए, क्या पिए और कैसे सांस ले ? हालत यह है कि अगर अच्छे ढंग से हम सांस ले लें तो फिर घर के बाकी खर्चे को किस तरह चलाया जाएगा ? अपनी पूरी आमदनी वायु धर को रिचार्ज कराने में खर्च कर दें तो साँस तो ले ली जाएगी , लेकिन फिर जिंदगी नहीं बचेगी ।
समस्या यह भी है अगर हमने वायु धर को रिचार्ज नहीं कराया और सांस नहीं ली, तब तो जिंदा रहने का कोई अर्थ ही नहीं रह जाएगा । थोड़ी ही देर में , ज्यादा से ज्यादा चार -छह घंटे में हम बेदम हो जाएंगे, हमारी सांस फूलने लगेगी और हम मृत्यु शैया पर पड़े होंगे। कितनी बुरी जिंदगी है यह बाईसवीं सदी की !
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लेखक:रवि प्रकाश, बाजार ,सर्राफा, रामपुर

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