मासूम बचपन और वक्त ( बाल दिवस पर विशेष )
बचपन थाम सकता है साइकिल का पहिया,
मगर नहीं थाम सकता वो वक्त का पहिया।
वह थामने की कोशिश भी कभी नही करता,
अपनी मस्ती में बेपरवाह जीवन है गुजारता।
उसका कोई सरोकार नहीं वक्त के पहिए से,
उसे तो काम है अपने साइकिल के पहिए से।
जिससे होता है उसका अति उत्तम मनोरंजन,
भूल जाता है सारी दुनिया इसमें होकर निमग्न।
बचपन की कल्पना को पंख इसी से तो मिलते है,
उसके दिल में फिर अरमानों के फूल खिलते हैं।
वक्त ने तो निर्धारित कर रखी है उसकी अवधि,
उसका जीवन काल और अरमानों की अवधि।
कब पूरे होंगे,होंगे भी या नहीं होंगे पूर्ण सपने,
फिलहाल बचपन भुला बैठा है खेल में अपने।
बचपन खेल रहा है साइकिल के पहिए के साथ,
और वक्त खेल रहा है भोले बचपन के साथ।
बचपन तो वक्त के साथ साथ ही चल रहा है,
ना आगे न पीछे बल्कि बराबर चल रहा हैं।
काश ! हर इंसा अपना जीवन बचपन सा जिए,
वक्त की चिंता छोड़,छोटे छोटे लम्हों को जिए।