सपनों के सौदागर
यहां जो भी आए ,
अपनी जेबें भरी और चल दिए ।
हम बिचारे जहां थे खड़े ,
वही के वही खड़े रह गए ।
यहां तो आते ही रहे हैं ,
और आते रहेंगे सपनो के सौदागर ।
अपना अपना माल बेचकर ,
चलते बने मुनाफा कमाकर ,
अपनी अपनी तिजोरियां भरकर ।
हम हाथ मलते रह गए ।
वो प्रपंची ! ध्रुत शकुनी की तरह ,
षड्यंत्र कारी पासा फेंककर ,
हम पांडवों को लूटकर ले गए ,
हमारी सारी मेहनत की पूंजी ।
और हम नादान हाथ ही मलते रह गए ।
अब यहां भरोसे के काबिल कोई नही रहा,
अब अपने साये पर भी भरोसा न रहा।
धोखे से भरी इस दुनिया में हम ,
हैरान परेशान से रह गए ।