Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Nov 2021 · 3 min read

पचास रुपए का रावण

वो दशहरे का ही दिन था, मैं बाल कटवाने नाई की दुकान पर गया हुआ था। भीड़ बहुत थी सो बाहर पड़ी मेज़ पर ही बैठ गया। तभी पांच छह बच्चों का झुंड बगल वाली दुकान के सामने आकर रुकता है। सभी साईकिल से थे। किसी बढ़ई की दुकान थी। दुकान के बाहर तखत, सीढ़ी, बांस , और छः सात छोटे बड़े रावण रखे हुए थे। दुकानदार और उसकी पत्नी एक नया रावण बना रही थी। एक चार छह महीने का बच्चा बगल में पड़ी खटिया में सो रहा था। उसी खटिया में एक दस बारह साल की लड़की बैठे कुछ पढ़ रही थी। तभी उनमें से एक लड़का बोला, ‘रावण चाहिए’ । बढ़ई की पत्नी का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा । शायद उनका अभी एक भी रावण नही बिका था। वह बोली,’ कौन सा चाहिए’ । सब लड़के रावण देखने लगे। कोई कहता ये रावण अच्छा हैं तो कोई कहता वो रावण अच्छा है उसी को लेंगे । लड़को ने बढ़ई से उनके दाम पूछे। अलग अलग रावण के उनके आकार के हिसाब से अलग अलग दाम थे। कोई डेढ़ सौ का था तो कोई ढाई सौ का था । सबसे बड़ा रावण पाच सौं का था। तब उनमें से किसी ने कहा, ‘ पचास रुपए का दोगे? ‘ बढ़ई बाला, ‘ पचास रुपए का कौन सा रावण मिलता है?’ लड़के बोले, ‘ हमको पचास रुपए में ही चाहिए ‘ । बढ़ई बोला मेरे पास पचास रुपए का कोई रावण नहीं है, बगल में दूसरी दुकान है वहाँ पता कर लो। लड़के जाने लगे । तभी उसकी पत्नी बोली, ‘ सुनो, जाओ नही ये डेढ़ सौ वाले के तुम कम से कम सौ ही रुपए दे दो’ । उनमें से एक लड़का बोला , ‘ हमारे पास केवल पचास रुपए ही है, उतने ही मे दे दो । ‘ वह धीमी आवाज में बोला। पत्नी ने अपने पती की तरफ देखा। उसने आँखों के इशारो से उसे मना कर दिया। वह बोली, ‘ बच्चो हमारे पास पचास रुपए का कोई रावण नहीं है। लड़को का झुंड आगे चला गया। वह दोनो फिर से नया रावण बनाने मे लग गये। थोड़ी देर बाद वही सब लड़के अपनी साईकिल पर एक रावण को रखकर उसी रास्ते से निकले । वह रावण आकार मे बहुत ही छोटा था। बांस की पतली फर्चियो से बना वह रावण उन लड़को के लिए खुशियो का भण्डार था। वह सब इतने खुश थे मानो अयोध्या का सारा राज पाठ उन्ही को मिल गया हो। वह चिल्लाते हुए जा रहे थे , ‘ आज हम भी रावण जलाएंगे! , आज हम भी रावण जलाएंगे! ‘ यह सब बढ़ई व उसकी पत्नी देख रही थी। वह बोली, ‘ आज हमारा कोई रावण बिकेगा या नही? बहुत दिनों से हमारा कोई सामान नही बिका है , त्यौहार सर पर है और घर मे खाने के नाम पर एक दाना भी नही हैं आज । आखिर तुमने पचास रुपए मे रावण को बेचने क्यो नही दिया? कुछ न होता तो सुबह का चाय पानी ही हो जाता ‘ । बढ़ई बोला , ‘ तुम जानती है वह रावण बड़ा था और बास की मोटी फर्चियों से बना था और अगर भगवान चाहेगा तो शाम तक कुछ न कुछ बिक ही जावेगा । ‘ मै बैठे-बैठे सोच रहा था कि आखिर रावण के भी क्या दिन आ गए है, जिस रावण की सोना की लंका थी वह आज पचास रुपए मे बिक रहा है । बढई की पत्नी उन बच्चो के झुंड को दूर तक टकटकी बांधे देख रही थी। उसके मुहँ पे हल्की सी मुस्कान थी। शायद वो उस खुशी की कल्पना कर रही थी जो उन बच्चो को मिली होगी, पर उसे न मिली । शायद वो ये सोचकर हंस रही थी नी चलो मेरा दशहरा तो नही बन सका, कम से कम इन बच्चो का ही दशहरा बन जाए। इतने में ही उसका खटिया पर सोया बच्चा रोने लगा वह उसे चुप करा ही रही थी कि इतने मे मेरा नंबर आ गया और मै बाल कटवाने दुकान के अंदर चला गया………… ।

5 Likes · 6 Comments · 874 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

स्याही का भी दाम लगे और कलम भी बिक जाए।
स्याही का भी दाम लगे और कलम भी बिक जाए।
Madhu Gupta "अपराजिता"
जीवन
जीवन
Santosh Shrivastava
वक्त जब बदलता है
वक्त जब बदलता है
Surinder blackpen
पन्नाधाय
पन्नाधाय
Dr.sunil tripathi nirala
भजन , ( अरदास कोरोना के समय) (32)
भजन , ( अरदास कोरोना के समय) (32)
Mangu singh
पुरुष नहीं रोए शमशान में भी
पुरुष नहीं रोए शमशान में भी
Rahul Singh
न जाने कितनी बार ।
न जाने कितनी बार ।
Shubham Anand Manmeet
धर्मदण्ड
धर्मदण्ड
डॉ नवीन जोशी 'नवल'
"तापमान"
Dr. Kishan tandon kranti
सिंदूर 🌹
सिंदूर 🌹
Ranjeet kumar patre
ラブドールlusandy
ラブドールlusandy
karendoll kin
सच्ची कविता
सच्ची कविता
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
इजाज़त हो गर
इजाज़त हो गर
Mahesh Tiwari 'Ayan'
दोहा पंचक. . . . . हार
दोहा पंचक. . . . . हार
sushil sarna
🙅आज का लतीफ़ा🙅
🙅आज का लतीफ़ा🙅
*प्रणय प्रभात*
मन
मन
आकाश महेशपुरी
*न्याय दिलाओ*
*न्याय दिलाओ*
Madhu Shah
सती सावित्री
सती सावित्री
मनोज कर्ण
* क्यों इस कदर बदल गया सब कुछ*
* क्यों इस कदर बदल गया सब कुछ*
Vaishaligoel
3128.*पूर्णिका*
3128.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कल पापा की परी को उड़ाने के लिए छत से धक्का दिया..!🫣💃
कल पापा की परी को उड़ाने के लिए छत से धक्का दिया..!🫣💃
SPK Sachin Lodhi
भविष्य के सपने (लघुकथा)
भविष्य के सपने (लघुकथा)
Indu Singh
हर दिन माँ के लिए
हर दिन माँ के लिए
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
"हे! कृष्ण, इस कलि काल में"
आलोक पांडेय
"एक सैर पर चलते है"
Lohit Tamta
- अपना होना भी एक भ्रम है -
- अपना होना भी एक भ्रम है -
bharat gehlot
"" *मौन अधर* ""
सुनीलानंद महंत
मुर्गा कहता (बाल कविता)
मुर्गा कहता (बाल कविता)
Ravi Prakash
यक्ष प्रश्न
यक्ष प्रश्न
Mamta Singh Devaa
चलते हैं क्या - कुछ सोचकर...
चलते हैं क्या - कुछ सोचकर...
Ajit Kumar "Karn"
Loading...