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12 Nov 2021 · 1 min read

प्यार की जली रोटी

……… कविता
…….. प्यार की जली रोटी
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जली हुई रोटी की तरह….
उसकी मोहब्बत किसी बेस्वाद दवाई की तरह हमेशा ही कड़वाहट भरी रही।
….. गीली लकड़ियों में फूंक मारकर आग जलाने की कोशिश में
जैसे उठता है काला गोरा धुआं,
हमेशा ऐसी ही घुटन का धुआं उमड़ता रहा
किसी मील की चिमनी के धुआं की तरहा।
बंद अलमारी में …..
लिखे वो पुराने खत पढ़कर ऐसा लगा……
जैसे कोई बेमन पढ़ रहा हो
सत्यनारायण की कथा ।
खतों की लगी तह से….
सूखा हुआ गुलाब गिरा और गिर कर बिखर गई उसकी पंखुड़ियां….
मेरे हर संजोए ख्वाब की तरह।
….. अचानक बिन मौसम बरसात की तरह
टपकने लगे ……
आंखों से आंसू ,
आज फिर यादों के रेगिस्तान में
दौड़ने लगी थी यादें……
प्यासे हिरण की तरह
और मैं भटक रही हूं ……
आज भी
उसके प्रेम की कस्तूरी लिए
उसकी यादों के साथ
….आखिर कब तक ??
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प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत रचना ,रचनाकार की मूल व अप्रकाशित रचना है।
जनकवि /बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर” इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
9149087291

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