सोशल मीडिया की गलियों में ढूंढ रहे….
सोशल मीडिया की गलियों में ढूंढ रहे
हम ऐसा मित्र जो हमे लगे अपना सा,
देख के प्रोफाइल उसकी यह है
सीधा सादा और कलीन है इसका चरित्र,
पर किस्मत कई बार दे जाती है धोखा,
जो दिख रहा था राम हमें वह तो निकला रावण सा,
इस भूलभूलैया सोशल मीडिया की गलियों में
बहुत मुश्किल है पाना अच्छा मित्र
मित्र तो स्कूल के समय के ही अच्छे थे,
जिसके मन में ना था कपट ना लालच।
जिसे हम नजदीक से देखते थे,
मिलते थे और झगडते भी थे,
दूसरे दिन सब भूलभूला के
वापस वही उमंग से मिलते थे।
सोशल मीडिया की गलियों
कौंन मित्र अच्छा कौंन बुरा है क्या पता
जीवन इसी सोच में लगा है,भरोसा ना अब होता है,
इसलिये सोशल मीडिया की गलियों में
जाने से भी दिल अब डरता है।
किस राहों में कोई अपनेपन का चोला ओढ़े हमें ठग जाए,
इस गलियों में गन्दगी हो ना भले सही
लेकिन मन को लूटने वाले बैठे है हजारो यही,
लेकिन श्री कृष्ण और सुदामा
जैसी मित्रता ढूढ़ने में आ जाएगा पसीना,
सोशल मीडिया की इन गलियों सिर्फ धोखा है,
संभल के गुजरना यहा से वरना
पूरी जिंदगी कोसोगे अपने आप को
एक सच्चा मित्र ढूंढना है बड़ा मुश्किल यहा,
मिल जाए नसीब से अगर कोई अच्छा
संभल कर रखना उसे जीवनभर।
(नोट-सोशल मीडिया की गलियों में अर्थात फेसबुक, इंस्टाग्राम अन्य)
परिचय :- अक्षय भंडारी
निवासी : राजगढ़ जिला धार
शिक्षा : बीजेएमसी
सम्प्रति : पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।