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9 Nov 2021 · 1 min read

नजर मिलाते रहो

****** नज़र मिलाते रहो *******
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नजरों से नजर तुम मिलाते रहो,
कुछ सुन लो वचन कुछ सुनाते रहो।

अपनों से मिली नफ़रतें है बहुत,
गैरों से हस्त भी मिलाते रहो।

आया काम नहीं जो कठिन राह में,
उनसे भी रिश्तों को निभाते रहो।

झुकने दे न मानव कभी शान को,
खुद के भी अहम को गिराते रहो।

मिटता ही नहीं है अहम पर सदा,
तुम मन से वहम को मिटाते रहो।

देखो तो उन्हें जो भटकते रहे,
भटकों को दिशा सी दिखाते रहो।

मनसीरत मिले जो न हो सो सका,
गहरी नींद में तुम सुलाते रहो।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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