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8 Nov 2021 · 1 min read

दोहे

भाग्य भरोसे बैठकर, माँगे भीख फ़कीर।
कर्मवीर नित कर्म कर, होता नहीं अधीर।।

अभिनेता अभिनय करे, रंगमंच संसार।
सूत्रधार जग ईश है, लीला अपरंपार।।

चंचल चितवन चाँद सी, भूले योगी योग।
राग-द्वेष में फँस गए, करते हैं नित भोग।।

चर्चित लोगों में हुआ, आज सकल परिवार।
अपवादों में घिर गया, बंद रखा अख़बार।।

सुरमा सम लोचन बसे, पिया बने शृंगार।
बंद पलक की ओट में, करें प्रणय अभिसार।।

काला तिल घायल करे, रक्तिम हुए कपोल।
आकर्षण का केन्द्र बन, बदल दिया भूगोल।।

भाई-भाई लड़ रहे, शेष नहीं अब प्यार।
द्वेष, घृणा मन में बसे, शब्द बने तलवार।।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)

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