असहिष्णु नहीं हम …
१०० वर्ष की गुलामी को सहा हमने ,
फिर बटवारे का भी दर्द भी सहा हमने ,
साम्प्रदायिक अलगाव से भी दुखता है दिल ,
हमने सहा है सदा बर्दाश्त से बाहर गम ,
और किया हद से जायदा प्यार सभी से .
हर मजहब ,हर ज़ात को ताक में रखकर ,
स्वीकार किया सब इंसानों को दिल से .
फिर हमें असहिष्णु कहा है क्यों ? और किसने ?