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6 Nov 2021 · 1 min read

कांच के बर्तन से टूट रहे

कांच के बर्तन से
टूट रहे हैं
दिल की तन्हाई में
दूर से आती कोई
शहनाई की धुन भी पर
कानों को
सुन रही है
इन बेरुखी सी
रुसवाइयों में
जी चाहता है
जन्म लेती रहूं
बार बार और
दम तोड़ती रहूं
अपनी ही बाहों में
दफन होती रहूं अपनी ही
कोख में
फिर जन्म लूं
किसी नशीली रस भरी
प्रेम की अंगड़ाई को
देखने के लिए।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001

Language: Hindi
1 Like · 416 Views
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