कहां है तुम्हारा इंसाफ प्रभु ?
बोलो भगवान ! कहां है तुम्हारा इंसाफ ?
कैसे कर सकते हो तुम ऐसे शैतानों को माफ ?
जो कभी मित्र बनकर दुश्मन सा व्यवहार करें,
सामने मीठे बने और पीठ पीछे बुराइयां करें ।
पड़ोसी और रिश्तेदार ही जल जल मर जाएं,
अपनों की उन्नति उनको क्यों रास न आए ।
आज घर घर में पैदा हो रही कुसंस्कारी संतानें,
माता पिता का अपमान करें और सुनाए तानें ।
तुम तो कहते थे की जो किसी को दुख देता है ,
उसे भी उससे दुगना दुख बदले में प्राप्त होता है ।
अब यह घोर कलयुग है पाप की कोई सीमा नहीं ,
तेजी से फैल रहा काले नागों का विष धीमा नहीं ।
भोले और शरीफ इंसानों का हाल तो पूछो ही मत ,
कपटी और तेज किस्म के लोगों ने बुरी कर दी गत।
अब तुम्हें सदाएं दे यदि कोई अत्यधिक दुखी होकर ,
तुम सुनते क्यों नहीं,क्यों मदद को नही आते दौड़कर।
“जब जब धर्म की हानि होगी मैं जरूर अवतार लूंगा,
और सारे अधर्मियो / पापियों का नाश कर दूंगा ।”
यह तुम्हारे ही शब्द थे न जो तुमने गीता में कहे थे,
तुम्हारे ही भरोसे हमने अब तक सभी दर्द सहे थे ।
परंतु मेरे प्यारे प्रभु ! अब तो हद हो चुकी है गमों की,
बेताबियां बढ़ गई सुनने को आहट तुम्हारे कदमों की ।
और कितनी प्रतीक्षा करवाओगे ,कब तुम आओगे ?
मिटाकर सभी पापियों को कब इंसाफ हमसे करोगे ?