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5 Nov 2021 · 1 min read

आंखों में ख़्वाब है न कोई दास्ताँ है अब

आंखों में ख़्वाब है न कोई दास्ताँ है अब
तन्हाईयाँ हैं, मैं हूँ, ग़मे – बेकराँ है अब

फ़ुर्क़त का एक लम्हा गवारा न था जिसे
होकर जुदा वो मुझसे, बहुत शादमाँ है अब

कल तक रहा जो सारे ज़माने का हुक्मराँ
उस आदमी की क़ब्र तलक, बेनिशाँ है अब

बर्के़ तपाँ की ज़द में है, बस तेरा ही मकान
यूँ तो तमाम शह्र में, अम्नो – अमाँ है अब

है कौन हमसुख़न मैं करूँ जिससे दिल की बात
हर आदमी को देखिए, शोला ब जाँ है अब

ये वक़्त भी था देखना आसी नसीब में
ख़ुद अपने ही मकान में तू बे मकाँ है अब
________◆_________
सरफ़राज़ अहमद आसी

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