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4 Nov 2021 · 1 min read

कवि

रात्रि जागरण केवल
उल्लूक ही नहीं करता
कवि भी करता है
वैचारिक मन्थन के लिए
समाजिक चिन्तन के लिए।

देखता है वह सारी रात अपने दूरदर्शी नेत्रों से
रात की काली चादर में सिमटा
दिन का उजला नंगा तन
मानवता का वहशीपन।

दूर दूर तक फैला काला अन्धकार
सघन घोर
सहमी सहमी बैठी छुप के
दीवारों की ओट में भोर।

देखकर यह दृश्य
कवि कराह उठता है
और भर जाते हैं
उसके क़लम में
स्याही की जगह आंसू ।
****

सरफ़राज़ अहमद “आसी”

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