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4 Nov 2021 · 1 min read

प्रेम

नन्ही सी मासूम कली वह
गुड़िया जैसी भोली भाली
बात बात पर लड़ती मुझसे
हंसती रोती शोर मचाती
कभी झनककर दूर हो जाती
कभी चहक कर पास वो आती
छिना झपटी करती मुझसे
बात बात पर लड़ती मुझसे
फूलों से तितली को पकड़ के
कभी कभी ललचाती थी
कलियों पर बैठे भँवरे को
देख कभी डर जाती थी
अर्पिता था नाम वह लड़की
साथ जो मेरे पढ़ती थी
छूटटी के दिन ना मिलने पर
अक्सर मुझसे लड़ती थी
अब भी उसकी याद के साये
मेरे साथ में रहते हैं
उम्र चढ़ी तब जाना मैंने
प्रेम इसी को कहते हैं।
****

सरफ़राज़ अहमद “आसी”

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