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4 Nov 2021 · 1 min read

भाष्कर

मैं कवि हूँ
कल्पना ही मेरा जीवन
सोचता हूँ

मैं जो होता
नीले अम्बर पर चमकता और दमकता “भाष्कर”
मेरी पहली रश्मियों की
तेज से
जागता अधखिला धरती का यह सोया स्वरूप्
और अलसाई हुई मुद्राओं को
त्याग कर डोलतीं
यह डालियाँ जो वृक्ष की
कोयलों की कूक से गूँजते
आम जामुन और यह महुआ के वन
धीरे धीरे फैल जाती गांव में
पुष्प गन्धित वायु से पूरित पवन
*****

सरफ़राज़ अहमद “आसी”

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