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4 Nov 2021 · 1 min read

यथार्त की बलि

यथार्त के नाम पर
चला है जब भी क़लम
और पड़ी है नीव
किसी उपन्यास की

जाने अन्जाने ही
हुई है बदनाम
समाज में
कोई न कोई “लोलिता”
*****

सरफ़राज़ अहमद “आसी”

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