पीछे नहीं मुड़ती (गीतिका)
पीछे नहीं मुड़ती (गीतिका)
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(1)
अगर टूटी है पेड़ों से ,तो फिर शाखा नहीं जुड़ती
घड़ी की सूई बढ़ती है, मगर पीछे नहीं मुड़ती
(2)
कहने भर की बातें हैं ,कि हिम्मत काम देती है
बिना पर के कोई चिड़िया ,कभी नभ में नहीं उड़ती
(3)
जो बैठे सिर्फ रहते हैं, परिश्रम कुछ नहीं करते
बुढ़ापा शीघ्र आता है , चुरा लेता है सब फुर्ती
(4)
जगह देखी न देखा वक्त , माहिर थूकने में हैं
दबी रहती है गालों में ,हमेशा कुछ के बस सुरती
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उ.प्र.) मोबाइल 9997615451