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27 Oct 2021 · 1 min read

निर्दोष बिन दोष फंस रहा

निर्दोष बिन दोष फंस रहा
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खामोश हैं लोग ना वश रहा।
निर्दोष बिन दोष है फंस रहा।

ना सामने से करे कोई वार भी,
है नाग काला यहाँ डस रहा।

ढीला हुआ हाल बेहाल का,
है डोर कोई कहीं कस रहा।

समझे न कोई शरीफों की दशा,
अपराध रग-रग सदा बस रहा।

सीरत सहे मार मन को पड़ी,
बाहर निर्मोही खड़ा हंस रहा।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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