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26 Oct 2021 · 1 min read

मुश्किलें इश्क़ की

शीर्षक *** ” मुश्किलें इश्क़ की ”

तुम्हारी यादों से निकल पाना मुश्किल हो गया है ।
तुम्हें यूं भूल पाना अब मुश्किल हो गया है ।।
गुज़रे साल में किये थे तुमने वादे ढेर सारे ।।।
उन वादों को निभाना अब मुश्किल हो गया है ।।।।

सोचा था बीता लूंगा तेरे आग़ोश में उम्र ये सारी ।
तेरी पनाह में रह पाना अब मुश्किल हो गया है ।।

बारिशों में भीग कर यूं ही शामें गुज़रा करती थी ।
उन बारिशों को ढूंढ़ पाना अब मुश्किल हो गया है ।।

बहाने से ही सही तुम मेरे घर आ जाती थी अक्सर ।
बहा कर अश्क़ तुझे बुलाना अब मुश्किल हो गया है ।।

तुम्हारे बिना ग़ुजरती ये बेवजह बेनूर ज़िन्दगी मेरी ।
बहारों का फिर लौट आना अब मुश्किल हो गया है ।।

इश्क़ की मीनार में दफ़्न हैं कई रांझे “काज़ी ” ।
उन मीनारों पर जश्न मनाना अब मुश्किल हो गया है ।।।।

?© डॉक्टर वासिफ़ काज़ी, इंदौर
—-#काज़ीकीक़लम
28/3/2 अहिल्या पल्टन ,इंदौर

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