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20 Oct 2021 · 2 min read

ग्रामीण जीवन की सामान्य विधिता

प्रतिभा प्रतिष्ठा यदि मन में होती,
सच डर भय शर्म से कह नहीं पाते।
विधा कहानी रोचक ढंग बनाकर,
उक्त जगह रह अपनी विधा सुनाते।

मात-पिता होते बच्चों के प्रेरक,
बच्चे की व्यापकता हेतु विधिक विधा करते।
विविध प्रकार के खाने को खिलाकर,
आम खुशी हेतु उन बच्चों को टहलाते।

बच्चे के भविष्य हेतु प्रार्थना विष्टि कराके,
प्रातःनमस्तेचरणस्पर्शकराकेआशीर्वाददिलवाते
सामाजिक राजनैतिक सामान्य बातें बताकर
बच्चे के श्रेष्ठ विशिष्टता हेतुनित्यक्रिया कराते

ज्ञान विशिेष्टता हेतु स्कूल में दाखिला करके,
नियमितपहुंचानेहेतुखुदपरिवारलोगोंसेकराते
शिक्षा दीक्षा की कैसी रहती व्यवस्था,
स्कूल स्वयं जाकर देख बच्चे को समझाते।

दुख तकलीफ जब होता बच्चे में,
उससे बात करके समझ दूर कर देते।
कैसी विधिता होती बच्चे के विधा में,
स्कूल पढ़ाई निश्चित विधिता से कराते।

उक्त निश्चिता हेतु बच्चे होते साफ-सुथरे-
साफ कपड़े पहन कर स्कूल को जाते।
खराब-अव्यवस्थित हेतु स्कूल कपड़े बनाकर
आवश्यक नित्य विधा बादकसरतकर्म कराते

पानी सेस्नानकरतौलियासेशरीरसाफ कराके
पूजा पाठ कराके सुबह का भोजन हैं कराते।
आवश्यक कपड़े पहन बस्ता लेकरस्कूल हेतु
दोपहरकानाश्तालेकरसाइकिलसेस्कूलपहुंचते

शिक्षा के पूर्व स्कूलमेंराष्ट्रीयमौलिकगीत होता
उक्तबादस्कूलकेप्रधानाचार्ययाविशिष्टशिक्षक
कम समय मेंराष्ट्रीयनैतिकहेतुभाव कहसुनाते
कहते नैतिकआराध्यसमाजराष्ट्र हेतुविष्टहोता

सभी बच्चे अपनी कक्षा में बैठकर,
अन्य साथियों से अपनीयाशिक्षाकीबातेंकरते
शिक्षा और दीक्षा होती क्लास के बच्चों को,
निश्चित समय में शिक्षक विशिष्टता से पढाते।

क्लास के निर्धारित समय में,
शाम तक निश्चित समय केकार्यपीरियड होते
निमित्त बच्चे अनुशासन से पढ़कर,
विविध विधा पढ़ करके शाम कोछुट्टीपा जाते

विविध विषय के शिक्षक अलग होते,
निश्चित समय में वे आकर के हैं पढ़ाते।
ऐसी दीक्षा होती कितनी आवश्यक,
दोपहर छुट्टी लंच बाद शाम तक रहे पढ़ते।

समय की विधिता होती बहुत आवश्यक,
सब स्कूलों में ऐसे विधि विधा होती रहती।
रिश्ते-नाते नर-नारी व दोस्ती,
घर परिवार सब विधा से रहते बाहर।

शाम को आता है अंतिम क्लास,
तन मन की विशिष्टता हेतु।
शारीरिक क्रिया हेतु
रोमांचक व्यायाम क्रिया कराते।

एन.सी.सी. राष्ट्रीय क्रियायें कराकर,
स्वास्थ्य समाज हेतु विशिष्टता कराते।
शिक्षा के साथ प्रार्थना सम्यता,
जीवन हेतु राष्ट्रीय द्रष्टता सिखाते।

संयम-नियम सभी बहुत हैं आवश्यक,
शिक्षा के साथ उक्त सब विधा सिखाते।
अति बुजुर्ग जो रहते हैं घर में,
ज्ञान दक्षता विधि विधिता सब बताते।

मौलिक क्षमता अति प्रबल करके,
मौलिक विधा छोड़ आत्मपरक बन जाते।
नैतिक द्रष्टता विधि विधा से मिलती,
संयम संकोच को विधा से हटा देते।

प्रेरक विधाएं ब्रह्म विधा से आकर,
मौलिक संस्कृति जो राष्ट्र है बनाती।
धन दौलत तथा प्रतिभा प्रतिष्ठा
सांसारिक विधा में सभी इसमें जीते।

आत्मविश्वास प्रबल कर पाते नहीं,
सामाजिक जीवन में नकारात्मकता से जीते।
यह संसार का सहारा सपना
अब तक जो किया धन का लाभ ही मिला है।

प्रतिभा प्रतिष्ठा सब खत्म होती रही,
जैसे ही रहे उनसे गिरे दिख रहे है।
यह जीवन कितना चमत्कारिक,
कारण औचित्य बिन हम जीते रहे।

बहुत आ करके विधि विधा खूब किये,
उर्जा समाप्ति बाद मानव नहीं बने।
धन दौलत और चाह को लेकर करके
भ्रष्ट मक्कारी आचरणकर विधा से दूर रहे।

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