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20 Oct 2021 · 2 min read

शुभकामनाओं से शुरू हुआ वर्ष यह

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शुभकामनाओं से शुरू हुआ वर्ष यह।
बधाई संदेशों से होगा संपन्न यह।

अच्छी सोच और अच्छे विचार टहलते रहेंगे
आदमी के मन में।
समता की बातें करते हुए मिलेंगे लोग जन-जन में।

दु:ख से दूर भागने हेतु सारा वर्ष जागता और
दौड़-भाग करता रहेगा।
लक्ष्य को उत्सव मानेगा वर्ष और प्रयास प्रतिबद्ध हो
कटिबद्ध हो करता रहेगा।

ईश्वर दिखेगा मुस्कुराता ज्यों वरदान बरसाता।
संकेतों से अच्छे बुरे रास्ते दिखाता।

होली,दिवाली; ईद,मुहर्रम जैसे जीवंत पर्वों को
समाजिकता से लबरेज़(ओतप्रोत) आने की ख़्वाहिश करेगा।
राजा इन खुशियों पर कानून और व्यवस्था का टैक्स चढ़ाएगा।

प्रजाजन सहम कर विरोध करेगा।
फिर वही बधाइयाँ बांटेगा आदमी
आधी मुस्कुराहट आधी रुलाई के साथ।

मिठाइयों के लिए
मैं बचपन के दिनों सा ही तरस जाऊंगा।
नंग-धड़ंग रास्ते की पटरी पर मैं देखूंगा
शुभकामनाएँ बंटते हुए अंधे की रेवड़ी सा। ।

मेरा दिन वैसे ही हताश,निराश रहेगा मेरे लिए।
शुभकामनाएँ सफलता की गारंटी नहीं बनेगी।
बधाइयों में अपनी असफलताओं का दर्द टीसेगी।

सारे अच्छे विचार हमारी निर्धनता के तर्क से हारेंगे।
समाजवाद या साम्यवाद जैसा कोई ‘वाद’ बनेंगे।

हर विचारधारा में लोग ही रहेंगे हावी।
विचारधारा न हो पाएगा खुद अपना दावी।

यौनिक चिंताओं से बेटियाँ दुबकी रहेंगी घरों में।
जन्मदिन की बड़ी होती शुभकामनाएँ धकेलेगी
उन्हें बड़े डरों में।

बेटे आवारागर्दी करते बिताएँगे बधाईयां-विहीन दिन।
उपार्जन हेतु वह भी जन्मा है किन्तु,मौका है छिन्न-भिन्न।

रास्ते अपना रास्ता पाने युवाओं सा छटपटाता रहेगा।
वृद्ध अप्रासंगिक होने के दर्द में
शतायु होने की शुभकामनायें झेलेगा।

सफल होने हेतु वर्ष नए-नए नारे गढ़ेगा।
नवीनता के लिए पुराने सिद्धांतों में नये रंग चुपड़ेगा।

युद्ध की पिपासा प्यास को भी लग जाए तो
नये वर्ष में खबरों का जनम होगा।
क्षुधा भूखे रह जाए तो शायद कोई इंकलाब
शर्म से गड़ेगा और वर्ष का उत्तम करम होगा।

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