तुम्हारे द्वार पर चिट्ठी हमारा रख गया होगा ———————————————–
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तुम्हारी खिड़कियों से चाँद ने झाँका
तुम्हें कुछ कह गया होगा.
तुम्हारे द्वार पर चिट्ठी हमारा रख गया होगा.
अवध की शाम में झंकृत वो वीणा कस गया होगा.
हमारे वायदे,कसमें की गजलें बज गया होगा.
तुम्हारी खिड़कियों से चाँद ने झाँका
तुम्हें कुछ कह गया होगा.
तुम्हारे चेहरे को छू गई जब चांदनी होगी.
हमारे छुअन के अहसास से तुम भर गयी होगी.
वह क्षण अमर होकर चाँद को चमका गया होगा.
तुम्हारे मन में दस्तक देह तेरा भर गया होगा.
तुम्हारी खिड़कियों से चाँद ने झाँका
तुम्हें कुछ कह गया होगा.
तुम्हारी झिड़कियों से चाँद सहमा सा
तुम्हें कुछ हंस गया होगा.
विरह के पीर का अहसास हृद में धर गया होगा.
तुम्हें विह्वल व व्याकुल नद सा प्रेमी कर गया होगा.
तुम्हें कर झांक चेहरा चाँद का शर्मा गया होगा.
तुम्हारी खिड़कियों से चाँद ने झाँका
तुम्हें कुछ कह गया होगा.
तुम्हारे द्वार पर चिट्ठी हमारा रख गया होगा.
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