Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Oct 2021 · 1 min read

दर्प

————————-
दर्पण में अपना चेहरा देखकर
दर्पण को चिढ़ाना दर्प है।
समर्पित मन से खुद को अर्पण करना
व्यक्तित्व-बिम्ब के विंदु,रेखाओं में
और आकलन अपना
खुद का खुद से संपर्क है।

दर्प व्यर्थ नहीं निरर्थक है।
दंड कर लेता है अपना स्वयं ही
निर्धारित।
इसलिए जीवन का पतित गर्त है।

दर्प भाषाओं से,कर्मों से होता है परिलक्षित-
तुम्हें या हमें
सिद्ध करता हुआ तुच्छ,
अपनी तुच्छता निर्बाध करता है आरोपित।

दर्प सुंदर है आकांक्षाओं का।
अथक प्रयत्नशील।
सुनियोजित समाज के लक्ष्य हेतु।
अवांक्षित है तो बेकार सारा ही दलील।

दर्प दृढ़ हो, स्वयंसिद्ध।
अहम् से अनाच्छादित।
कृष्ण का कृष्ण होने का दर्प
सभाओं में द्रौपदी के संरक्षण को समाहित।

दर्प नमस्कृत हों।
स्वच्छ और सुवासित हों।
कल्याण से परिभाषित हों।
——————————————————-

Language: Hindi
241 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

एकांत मन
एकांत मन
TARAN VERMA
*नए दौर में*
*नए दौर में*
Shashank Mishra
आप हो ना हमारी यादों में
आप हो ना हमारी यादों में
Dr fauzia Naseem shad
"बेखुदी "
Pushpraj Anant
DR ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
" मन "
Dr. Kishan tandon kranti
शब्द और उम्र
शब्द और उम्र
Shekhar Deshmukh
I can’t be doing this again,
I can’t be doing this again,
पूर्वार्थ
टमाटर के
टमाटर के
सिद्धार्थ गोरखपुरी
अगर मैं / अरुण देव (पूरी कविता...)
अगर मैं / अरुण देव (पूरी कविता...)
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
3451🌷 *पूर्णिका* 🌷
3451🌷 *पूर्णिका* 🌷
Dr.Khedu Bharti
*कुछ शेष है अब भी*
*कुछ शेष है अब भी*
अमित मिश्र
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
Rj Anand Prajapati
तुम मेरा इतिहास पढ़ो
तुम मेरा इतिहास पढ़ो
Arun Prasad
$ग़ज़ल
$ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
*📌 पिन सारे कागज़ को*
*📌 पिन सारे कागज़ को*
Santosh Shrivastava
आओ एक गीत लिखते है।
आओ एक गीत लिखते है।
PRATIK JANGID
*मोर पंख* ( 12 of 25 )
*मोर पंख* ( 12 of 25 )
Kshma Urmila
*दिन-दूनी निशि चौगुनी, रिश्वत भरी बयार* *(कुंडलिया)*
*दिन-दूनी निशि चौगुनी, रिश्वत भरी बयार* *(कुंडलिया)*
Ravi Prakash
सत्य क्या
सत्य क्या
Rajesh Kumar Kaurav
लो आ गए हम तुम्हारा दिल चुराने को,
लो आ गए हम तुम्हारा दिल चुराने को,
Jyoti Roshni
श्रद्धाञ्जलि
श्रद्धाञ्जलि
Saraswati Bajpai
सबसे पहले वो मेरे नाम से जलता क्यों है।
सबसे पहले वो मेरे नाम से जलता क्यों है।
Phool gufran
कर्मगति
कर्मगति
Shyam Sundar Subramanian
“मेरे जीवन साथी”
“मेरे जीवन साथी”
DrLakshman Jha Parimal
बुंदेली दोहे- गुचू-सी (छोटी सी)
बुंदेली दोहे- गुचू-सी (छोटी सी)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
जो चाहा वो मिल न सका ,
जो चाहा वो मिल न सका ,
अश्विनी (विप्र)
मां शारदे वंदना
मां शारदे वंदना
Neeraj Kumar Agarwal
बाल कविता: मेरा कुत्ता
बाल कविता: मेरा कुत्ता
Rajesh Kumar Arjun
इंसान को इंसान ही रहने दो
इंसान को इंसान ही रहने दो
Suryakant Dwivedi
Loading...