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11 Oct 2021 · 1 min read

क्या देखूँ

ख़्वाब को ख़्वाब की तरह देखूँ तो फिर
क्या देखूँ।
जरा ठहर के अपनी किस्मत का अन्दाजे
बयां देखूँ।
जिंदगी लगता है बहुत कुछ दिखाने को आमादा है,
ऐ वक्त तूंही बता इतने से वक्त में मैं क्या
क्या देखूँ।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी

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